Wednesday 30 November 2016

नोटबंदी के बाद एक महीने में सबसे ज्यादा नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण


naxalists
नई देहली : नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों में सरकार की नीतियों, सुरक्षा बलों की ओर से बढ रहे दबाव और हालिया नोटबंदी के निर्णय का असर नक्सलियों पर खूब पड़ा है। पिछले २८ दिनों में ५६४ नक्सलियों और उनके समर्थकों ने आत्मसमर्पण किया है। यह अबतक किसी एक महीने में आत्मसमर्पण किए नक्सलियों की सबसे बड़ी संख्या है।
हालांकि इसमें सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की नियमित कार्रवाई की अहम भूमिका है। फिर भी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में हुए आत्मसमर्पण पर नोटबंदी का असर भी माना जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले ५६४ नक्सलियों और उनके समर्थकों में से ४६९ तो केवल ८ नवंबर के बाद हुए हैं।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने ८ नवंबर को ५०० और १००० रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। अधिकारियों के मुताबिक ७० प्रतिशत आत्मसमर्पण अकेले ओडिशा के मलकानगिरी में हुए हैं। पिछले महीने हुए एनकाउंटर में मलकानगिरी में २३ नक्सली मारे गए थे।
अधिकारियों का कहना है कि ऐसा पहले नहीं देखा गया। यदि पिछले महीनों और सालों के दौरान के आंकड़ों को देखें तो इतने कम समय में इतना अधिक आत्मसमर्पण देखने को नहीं मिला। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक २०११ से लेकर इस साल १५ नवंबर तक ३७६६ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।
अकेले २०१६ में १३९९ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। यह पिछले ६ सालों में सर्वाधिक है। सीआरपीएफ के अधिकारियों के मुताबिक इसके पीछे कई सारे फैक्टर हैं। इनमें सरकार की तरफ से चल रही विकास की योजनाओं के साथ माओवादियों और उनके समर्थकों को दिए गए कड़े संदेश का भी असर है।
इसके साथ ही साथ अधिकारी नोटबंदी को भी इसके पीछे की बड़ी वजह मान रहे हैं। उनका कहना है कि पुरानी बड़ी करंसी के चलन से बाहर हो जाने के बाद माओवादी हथियार, विस्फोटक, दवाएं और अपनी जरूरत का सामान आसानी से खरीद पाने में असमर्थ हो गए हैं।
स्तोत्र : नवभारत टाइम्स 

Saturday 19 November 2016

छत्‍तीसगढ : सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में ६ नक्‍सली ढेर


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नारायणपुर (छत्तीसगढ़) (जेएनएन) : छत्तीसगढ के नारायणपुर जिले में शनिवार को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड में ६ नक्सली मारे गए। इस मुठभेड में सुरक्षाबल के किसी जवान के घायल होने की खबर नहीं है।
नारायणपुर में बस्तर पुलिस के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व ग्रुप (डीआरजी) की अबूझमाड़ के तुस्पल और बेचा कालम के जंगलों में प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) की मिलिटरी कंपनी नं. ६ के नक्सलियों से मुठभेड हुई, जिसमें ६ नक्सलियों के मारे जाने की खबर है। हालांकि अब तक केवल ५ नक्सलियों के शव ही बरामद हुए हैं।
इन नक्सलियों के पास से हथियार भी बरामद हुए हैं, जिसमें तीन १२ बोर की रायफल और एक ३१५ बोर की रायफल सहित कुल पांच हथियार शामिल हैं।
स्त्रोत : जागरण

Monday 23 May 2016

मणिपुर : उग्रवादियों के आक्रमण में असम राइफल्स के ६ सैनिक हुतात्मा


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मणिपुर : उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड में असम राइफल्स के ६ सैनिक हुतात्मा हो गए हैं । शहीद सुरक्षाकर्मियों में एक जेसीओ और ५ सैनिक सम्मिलित है ।
बताया जा रहा है कि, आक्रमण उस समय हुआ जब जांच दल के सदस्य भूस्खलन का निरीक्षण करके लौट रहे थे ।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उग्रवादियों ने रविवार को असम राइफल्स के जवानों पर घात लगाकर आक्रमण किया । यह आक्रमण मणिपुर के चंदेल जिले में हुआ ।
जानकारी के अनुसार, आक्रमण के बाद उग्रवादी हुतात्मा सैनिकों के हथियार भी उठा ले गए हैं ।

Saturday 5 March 2016

बस्तर (छत्तीसगढ) में हुए नक्सली आक्रमण में ३ सैनिक हुतात्मा, १७ घायल

छत्तीसगढ – बस्तर में नक्सलियों से घिरे २०० सैनिकों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। तीन नक्सली आक्रमण में ३ सैनिक हुतात्मा हो गए हैं जबकि १७ घायल हैं। उनमें १२ की स्थिती गंभीर है। ये सैनिक बस्तर के डब्बामरका में तीनों आेर से घिर गए थे। यहां गुरुवार सुबह से एनकाउंटर चल रहा था। कई सैनिक खून से लथपथ थे, फिर भी हसते हुए हिम्मत के साथ २६ घंटे नक्सलियों से लडते रहे।
सैनिकों ने बताया, ‘नक्सलियों के जाल में फंसकर हमारे तीन सैनिक हुतात्मा हो चुके थे। कुछ घायल थे। सबको लेकर गोलिबारी करते हुए हम किस्टाराम की ओर बढ रहे थे। गोलियों की बौछार के बीच प्रतिआक्रमण करते हुए सात किमी चले।’
एक घायल पुलिस अधिकारी ने बताया, हमारा अभियान १ मार्च को सुबह किस्टाराम से शुरू हुआ। पहली बार उस क्षेत्र में घुस रहे थे, जो पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में माना जाता है। हम गोलापल्ली के उस क्षेत्र की ओर बढ रहे थे, जो नक्सलियों का मुख्यालय माना जाता है। हमें पता था कि आक्रमण होगा। हम हर स्थिति से निपटने को तैयार थे। पांच दिन का राशन हमारे साथ था। दो दिन जंगल में खोज करने के बाद ३ मार्च को किस्टाराम से १४ किमी आगे बढे और उनके जाल में फंसे।’