नई देहली : नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों में सरकार की नीतियों, सुरक्षा बलों की ओर से बढ रहे दबाव और हालिया नोटबंदी के निर्णय का असर नक्सलियों पर खूब पड़ा है। पिछले २८ दिनों में ५६४ नक्सलियों और उनके समर्थकों ने आत्मसमर्पण किया है। यह अबतक किसी एक महीने में आत्मसमर्पण किए नक्सलियों की सबसे बड़ी संख्या है।
हालांकि इसमें सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की नियमित कार्रवाई की अहम भूमिका है। फिर भी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में हुए आत्मसमर्पण पर नोटबंदी का असर भी माना जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले ५६४ नक्सलियों और उनके समर्थकों में से ४६९ तो केवल ८ नवंबर के बाद हुए हैं।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने ८ नवंबर को ५०० और १००० रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। अधिकारियों के मुताबिक ७० प्रतिशत आत्मसमर्पण अकेले ओडिशा के मलकानगिरी में हुए हैं। पिछले महीने हुए एनकाउंटर में मलकानगिरी में २३ नक्सली मारे गए थे।
अधिकारियों का कहना है कि ऐसा पहले नहीं देखा गया। यदि पिछले महीनों और सालों के दौरान के आंकड़ों को देखें तो इतने कम समय में इतना अधिक आत्मसमर्पण देखने को नहीं मिला। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक २०११ से लेकर इस साल १५ नवंबर तक ३७६६ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।
अकेले २०१६ में १३९९ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। यह पिछले ६ सालों में सर्वाधिक है। सीआरपीएफ के अधिकारियों के मुताबिक इसके पीछे कई सारे फैक्टर हैं। इनमें सरकार की तरफ से चल रही विकास की योजनाओं के साथ माओवादियों और उनके समर्थकों को दिए गए कड़े संदेश का भी असर है।
इसके साथ ही साथ अधिकारी नोटबंदी को भी इसके पीछे की बड़ी वजह मान रहे हैं। उनका कहना है कि पुरानी बड़ी करंसी के चलन से बाहर हो जाने के बाद माओवादी हथियार, विस्फोटक, दवाएं और अपनी जरूरत का सामान आसानी से खरीद पाने में असमर्थ हो गए हैं।
स्तोत्र : नवभारत टाइम्स
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