Sunday 2 September 2018

यूपीए ने २०१३ में ‘अर्बन नक्सलियों’ को बताया था गरिल्ला आर्मी से भी खतरनाक


नई देहली : नक्सल लिंक को लेकर ऐक्टिविस्टों की गिरफ्तारी पर भले ही राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा है, परंतु २०१३ में यूपीए सरकार की ही राय मौजूदा कांग्रेस से उलट थी। तब यूपीए सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनाया दायर कर कहा था कि शहरी केंद्रों में अकादमिक जगत से जुडे कुछ लोग और ऐक्टिविस्ट ह्यूमन राइट्स की आड में ऐसे संगठनों को संचालित कर रहे हैं, जिनका लिंक माओवादियों से है। यही नहीं यूपीए सरकार ने इन लोगों को जंगलों में सक्रिय माओवादी संगठन पीपल्स लिबरेशन गरिल्ला आर्मी से भी खतरनाक बताया था।
यूपीए सरकार ने अपने ऐफिडेविट में कहा था कि, ये अर्बन नक्सल बडा खतरा हैं और सीपीआई माओवादी से जुडे हैं। यही नहीं सरकार ने कहा था कि कई मायनों में ये काडर गुरिल्ला आर्मी से भी अधिक खतरनाक हैं। बता दें कि पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी सीपीआई माओवादी की ही एक सशस्त्र विंग है। २००१ से लेकर अब तक माओवादियों ने ५९६९ नागरिकों की हत्या की थी, २१४७ सुरक्षार्मियों की हत्याएं की हैं और पुलिस एवं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों से ३५६७ हथियारों की लूट को अंजाम दिया है।
उस दौरान सुशील कुमार शिंदे के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने यह भी कहा था कि यदि इन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है तो इससे सरकार की नकारात्मक छवि बनेगी। इसकी वजह यह है कि इन अकादमिशियनों और ऐक्टिविस्ट्स की प्रॉपेगेंडा मशीनरी खासी प्रभावशाली है। यदि इनके खिलाफ कोई ऐक्शन लिया जाता है तो एजेंसियों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार को बल मिलेगा।
‘किशोर समरीत बनाम भारत सरकार एवं अन्य’ के मामले में सरकार ने विस्तार से यह बताया था कि कैसे ऐक्टिविस्ट्स का संपर्क माओवादियों से है और किस तरह से अपनी अलग पहचान रखते हुए भी इन लोगों की ओर से उन्हें मदद की जाती है।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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